दिन 13 अगस्त 2004 नागपुर के कस्तूरबा नगर डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में अक्कू यादव नामक शख्स की पेशी थी रसोई वाला चाकू पत्थर और मिर्च पाउडर बिना ज्यादा समय कब आएगी औरतों की भीड़ यादव पर टूट पड़ी 15 मिनट के शरीर पर पत्थर से ज्यादा घाव के निशान थे क्या दुश्मनी थी उन्होंने क्या ऐसा कदम उठाने की सूची 200 का पोशाक में यही फिल्म बनाई गई है !
200 के टाइटल से बनाई गई है तुम्हें क्या अच्छा लगा क्या नहीं औरतों को दिखाने का प्रतीक बन गया होगा टाइटल रोल होते हैं और कटशॉर्ट चलते हैं सिलाई मशीन के बगल में से किसी एक संदेश आर्डर निकालने का रेसिपी के साथ ध्यान भंग करता हुआ प्रेशर कुकर बढ़ता है और अपने-अपने घरों से निकलती है एक दलित बस्ती का रहने वाला था जात पात वाला मामला बनने से पहले ही प्रशासन से दबाना चाहता था !
न्यू पेपर कल बनकर नहीं रह जाता है और दूसरी कहानी लगभग तीन ही हो नजरिया दोस्तों की तारीफ जरूर होनी चाहिए और दूसरों को मार डाला इस लाइन को फिल्म का वन लाइ
नर के सब्जेक्ट के साथ बिल्कुल बेईमानी होगी मृत्यु देने की वजह कोई आम नहीं हो सकती घटना का जिक्र हुआ है इसके पर्यायवाची लगने वाले 2 शब्द याद आते हैं जातिवाद और पीसीआर की बलि चौधरी को देखते वक्त महाभारत का एक किरदार याद आता है गांव के घर से एक सदस्य को बुलाता अपनी भूख मिटाने के लिए दलितों की बस्ती में करने वाला बल्ली भी यही करता है कि उसके पीछे पलट का सपोर्ट था लेकिन थोड़ा सा गहराई में उतर जायेंगे की बात गलती हो जाती है वाले समाज में बल्ली के लिए भी राह चलते महिला को छेड़ना कोई पूरी बात नहीं ऊपर से यह महिलाएं ठहरी दलित उनका पक्ष सुनने से पहले ही उनका पूरा नाम पूछे गीता की जाति का पता लगाया जा सके कि उल्टा उनके चरित्र पर सवाल उठ जाएंगे इसलिए जैसे लोगों को बचाने के लिए पॉलिटिकल सपोर्ट बाद में आता है पहले तो उनका प्रेम नी आ जाता है वो काफी होता है मर्द होने का प्रॉब्लम तो पूछी जाती वाला !
बात अपनी ऑडियो में सर अपने किरदारों को लगातार याद दिलाती है फिल्म में इस पर एक हाथ डायलॉग थे मिडल क्लास के बाद आता है और क्लास फिर आते हैं गरीबी रेखा से नीचे वाले लोग फिर आते हैं दलित उसके बाद आती है दलित महिलाएं स्पर्श लोग जरूर लग सकती है उसकी वजह से मैं किसी के मसाले वाले फैक्टर का मीटिंग होना डायलॉग अबकी बारी ऑप्शन के लिए एक चॉकलेट की बहुत जरूरत होती है !
Bell Bottom Review: अक्षय कुमार का एक्शन और लारा दत्त की
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आशा का किरदार कितना पर्सेंट है और सशक्त किसका है इसका अंदाजा इस एक डायलॉग से मिल जाता है जो कहती है वहां सब अच्छा है लेकिन सबको अच्छा करना है नहीं पढ़ रहे हैं उनके किरदार की सबसे अच्छी बात है कि वह महिलाओं का तारणहार बनकर नहीं खड़ा होता किसी भी दिन का सामने आना बहुत जरूरी है दो ही पक्ष होते हैं अत्याचारी कौर शोषित वर्ग का खिताब को मानने वाले विट्ठल खुद खाते हैं लेकिन जैसे-जैसे
Official Trailer 200 Halla Ho Movie -
उनके दीदार के दो विपरीत साइट देखने के बाद जमीनी हकीकत भूल चुका था और उसके सामने बन के आ चुकी है दोनों ही लगता नहीं कि एक्टिंग कर रहे हैं यहां भी जा जमीन आसमान का अंतर 2 सालों में उनके किरदार को देखकर आपके चेहरे पर स्माइल नहीं आएगी उल्टी आने लगी थी !