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Koi Jaane Na Film Review: कहानी कठिन नहीं है, मगर इसको बनाने का कारण क्या है Tej Samachar India - Get the Latest Trending News Of Politics, Sports , Health , Entertainment , Education , Bollywood, Hollywood and Many More.

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 Koi Jaane Na Film Review: कहानी कठिन नहीं है, मगर इसको बनाने का कारण क्या है



Koi Jaane Na Film Review: ये फिल्म क्यों बनायीं- कोई जाने ना. सस्पेंस, मर्डर, लव स्टोरी, साइकियाट्रिक प्रॉब्लम, नॉवेलिस्ट जो कि मोटिवेशनल किताबें लिखता है और साथ में लिखता है पल्प फिक्शन, पुलिसवाले जो पुलिसवालों की तरह कतई काम नहीं करते |

Koi Jaane Na Film Review: अमेजॉन प्राइम वीडियो हाल ही में अमेज़ॉन प्राइम वीडियो पर रिलीज़ हुई है फिल्म 'कोई जाने ना'. फिल्म शुरू होती है और करीब 10 मिनिट गुज़र जाने के बाद, आप भी समझ सकते हैं कि ये फिल्म क्यों बनायीं - कोई जाने ना. सस्पेंस, मर्डर, लव स्टोरी, साइकियाट्रिक प्रॉब्लम, नॉवेलिस्ट जो कि मोटिवेशनल किताबें लिखता है और साथ में लिखता है पल्प फिक्शन, पुलिसवाले जो पुलिसवालों की तरह कतई काम नहीं करते, एक हत्यारा जो हत्या करने की स्टाइल की नक़ल कर रहा है, एक ब्लैकमेलर पत्रकार, एक ब्लैकमेलर फोटो स्टूडियो वाला, दो चार मर्डर और पता नहीं क्या-क्या.


कहानी कठिन नहीं है, मगर इसको बनाने का कारण क्या है - कोई जाने ना. कुणाल कपूर एक प्रतिभाशाली अभिनेता हैं. रंग दे बसंती में उनके रोल से सभी प्रभावित हुए थे, उन्हें परदे पर काम कम मिलता है और थोड़ा वो भी गिना चुना काम करते हैं. ये वाली फिल्म स्वीकार करते समय उनके ज़हन में क्या था? एक ऐसा नॉवेलिस्ट जो तलाकशुदा है, उसकी पत्नी उसे धोखा देती है और उसके पब्लिशर से शादी कर लेती है. कुणाल एक और पब्लिशर के लिए छुप के किताबें लिखता है, और उसकी रिसर्च करने के लिए वो अलग अलग वेश भूषा धारण कर अलग अलग जगह जाता है, अलग अलग लोगों से मिलता है और उनकी स्टडी करता है. इस बीच में वो, समाज के दुश्मन लोगों को जान से भी मार देता है.


कुणाल गोवा में अपना नया उपन्यास लिखने के लिए जाता है, जहां उन्होंने अमेयरारा राकूर को रास्ते में उठाया और धीरे-धीरे अपने प्यार में पड़ता है। तब ऐसा लगता है कि यह एक अन्य प्रकाशक के लिए एक मांग के बाद के पत्रकार, कुणाल और लेखन के रहस्य का पता लगाकर कुणाल ब्लैकमेल में है। पत्रकार और उसके साथी को रक्त मिलता है और आरोप कुणाल में आते हैं। क्या वह अपनी समस्या से बाहर निकल जाएगा - कोई भी अभिनेता अमीन हाजी नहीं जानता है, जिन्होंने मंदिर मंदिर में खिलाड़ी खेला था, इस फिल्म और इस निर्देशक के लेखक भी हैं।


अमीन ने इसके पहले स्वदेस और जोधा अकबर जैसी फ़िल्में लिखी हैं. वे आमिर खान के पुराने दोस्त हैं और इसी वजह से आमिर ने इस फिल्म में एक कैमियो करना स्वीकार किया. फिल्म की शुरुआत में उन पर एक गाना फिल्माया गया है जो उन्होंने एली अवराम के साथ शूट किया था. इस गाने की शूटिंग के लिए आमिर ने अपनी होम प्रोडक्शन 'लाल सिंह चड्ढा' की शूटिंग रोक दी थी. मित्रता का कोई पैमाना नहीं होता मगर मित्रों से इतनी उम्मीद तो होती है कि वो अपने मित्र की इमेज बनाये रखें. कहानी महा कन्फ्यूजिंग है. कुणाल कपूर, अंग्रेजी भाषा के लेखक हैं, एक यूट्यूब चैनल चलाते हैं, मोटिवेशनल लेक्चर देते हैं, हिंदी के, सस्ते और बस स्टैंड पर बिकने वाले, उपन्यास भी लिखते हैं, जीप चलाते हैं, अपने नॉवेल के किरदारों की रिसर्च करने के लिए वो मेकअप लगा कर कभी पादरी तो कभी सरदार या ऐसा ही कुछ बनते रहते हैं, कभी कभी अपराधियों का सफाया भी कर देते हैं.


इस तरह से फिल्म में कहीं और कहीं और होना चाहिए। हिंदी नोवेल, कुणाल, मुख्य चरित्र, खान खान है, जो अपराध में निहित है। इस भूमिका का शोध करने के इरादे से, कुणाल, मुजरिम की मौत हो गई। वे अमायारा झिल्ली के साथ हैं, जिन्होंने हिंदी बोलना नहीं सीखा। लेकिन उनसे चीजों की जरूरत थी, उसने कार्य करना भी नहीं सीखा। डॉक्टर अतुल कुलकर्णी राव की भूमिका में थे, और उनके दोनों समय और अभिनय प्रतिभा बर्बाद हो गई थी। राज जुतिशी ने छोटे रोल में एक अच्छा काम किया है। अमीन हाजी दोनों बच्चों ने भी बाल कलाकारों की भूमिका निभाई। अदिति गुईइकुर और अचंत कौर की भूमिका बहुत नाराज हैं। एक फिल्म आपराधिक के रूप में, अमीन एक जुड़वां भाई करीम है, जो अपने भाई की फिल्म में अभिनय दिखता है। सबसे कमजोर खिलाड़ी अश्विनी कलास्कर है, जो एक पुलिस अधिकारी के रूप में कार्य करता है।


गोवा में अश्विनी शायद रोहित शेट्टी की फिल्म शूट करती रहती हैं, और उसी में से समय निकाल कर उन्होंने कोई जाने ना में काम कर लिया है.. इस फिल्म में अश्विनी का किरदार एकदम लचर है, कमज़ोर है और डायरेक्शन विहीन है. अमीन हाजी द्वारा निर्देशित यह पहली फीचर फिल्म है और सिर्फ इसलिए इन्हें माफ़ कर देना ज़रा मुश्किल है क्योंकि फिल्म में ढेरों परते हैं और इनकी ज़रुरत ही नहीं थी. कहानी लिखना एक बात है और कहानी का स्क्रीनप्ले बनाना दूसरी. लेखक हमेशा अपनी कृति से प्यार कर बैठता है और वो कोई भी सीन काटना ही नहीं चाहता. हर सीन को फिल्म में रखने के लिए कोई न कोई जस्टिफिकेशन ढूंढ ही लेता है. अमीन के साथ भी यही हुआ है. फिल्म में संगीत बिलकुल ही औसत है.


तनिष्क बागची का कंपोज़ किया हुआ, आमिर और एली वाला गाना 'हरफन मौला' के अलावा कोई गाना याद नहीं रहता. बाकी गाने रोचक कोहली और अरमान मालिक ने आपस में बांट लिए हैं. अनिल कपूर वाली मेरी जंग के सुपरहिट गाने 'ज़िन्दगी की यही रीत है' का रीमिक्स भी है. सिनेमेटोग्राफर अरुण प्रसाद हैं, कोई नयापन नहीं है काम में. गोवा के कुछ रंग समेटे हैं जो कि हर सिनेमेटोग्राफर करता ही है. फिल्म के एडिटर अमीन के एक और मित्र बल्लू सलूजा हैं जो लगान, स्वदेस और जोधा अकबर जैसी फिल्म्स एडिट कर चुके हैं. कोई जाने ना में उनके आर्ट और क्राफ्ट को क्या हो गया था पता नहीं. बहुत बुरी एडिटिंग की गयी है. फिल्म को नहीं देखेंगे तो कुछ बिगड़ेगा नहीं. अच्छा या याद रखने लायक कुछ नहीं है. थोड़ा आमिर खान और एली अवराम का सेक्सी डांस के अलावा पूरी फिल्म देखने की कोई वजह नहीं

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